Ancient Computer Science
Language Sanskrit,nasa sanskrit
programming, nasa sanskrit
report, The power of Sanskrit
(“संस्कृत”), NASA to echo Sanskrit
in space, website confirms its
Mission Sanskrit
Ancient Computer Science
Language :
नासा के एक वैज्ञानिक रिक ब्रिग्ज़ का
एक लेख ‘ए आई’ ( आर्टिफ़िशल
इंटैलिजैन्स्, कृत्रिम् बुद्धि) पत्रिका में
1985 में प्रकाशित हुआ है जिसमें उऩ्होंने
घोषणा की है : “कम्पूटर के लिये
सर्वोत्तम भाषा संस्कृत है”।
कम्पूटर की क्रियाओं के लिये कम्प्यूटर
के अन्दर एक भाषा की आवश्यकता
होती है जो गणितीय तथा अत्यंत
परिशुद्ध होती है। इस भाषा से ‘बात’
करने के लिये कम्प्यूटर प्रोग्रामर्स को
एक प्रचलित (स्वाभाविक )भाषा की
आवश्यकता होती है जो उसके दैनंदिन
कार्य की भाषा तो होती है किन्तु उसका
भी परिव्हुद्ध होना अनिवार्य होता है
अन्यथा कम्प्यूटर उसकी बात को गलत
समझ सकता है।
पिछले बीसेक वर्षों से एक ऐसी
परिशुद्ध स्वाभाविक भाषा का विकास
करने का विपुल व्यय के साथ भरसक
प्रयत्न किया जा रहा है जिससे
क्रमादेशक अपनी बात कम्प्यूटर को
सुस्पष्ट अभिव्यक्त कर सके । एतदर्थ
स्वाभाविक भाषाओं के शब्दार्थ –
विज्ञान तथा वाक्य रचना को संवर्धित
किया जा रहा था। किन्तु तार्किक डेटा के
सम्प्रेषण हेतु यह प्रयास न केवल दुरूह
साबित हो रहे थे वरन अस्पष्ट भी थे ।
अतएव यह विश्वास संपुष्ट हो रहा था
कि स्वाभाविक भाषाएं कृत्रिम भाषाओं
के समान गणितीय यथार्थता तथा
आवश्यक परिशुद्धता के साथ बहुत से
विचारों को सम्प्रेषित नहीं कर सकतीं।
वास्तव में भाषा विज्ञान तथा कृत्रिम
बुद्धि के बीच यह विभाजन वाली सोच ही
गलत है। क्योंकि बिना ऐसे विभाजन के
कम से कम एक स्वाभाविक भाषा ऐसी है
जो लगभग १००० वर्ष की अवधि तक
जीवन्त सम्प्रेषण की भाषा रही है और
जिसके पास अपना विपुल साहित्य भी है;
वह है संस्कृत भाषा। साहित्यिक समृद्धि
के साथ इस भाषा में दार्शनिक तथा
व्याकरणीय साहित्य की परम्परा भी
इस शताब्दी तक सशक्त रूप से सतत
कार्यशील रही है। संस्कृत भाषा में
पदान्वय करने की एक विधि है जो
कृत्रिम बुद्धि में आज की ऐसी क्षमता
के न केवल कार्य में वरन उसके रूप में भी
बराबर है; यह अनोखी उपलब्धि संस्कृत
भाषा के वैयाकरणों की अनेक
उपलब्धियों में से एक है। यह लेख
दर्शाता है कि स्वाभाविक भाषा कृत्रिम
भाषा की तरह भी कार्य कर सकती है,
तथा कृत्रिम बुद्धि में बहुत सा अन्वेषण
कार्य एक सहस्राब्दि पुराने आविष्कार
को एक चक्र के पुनराविष्कार की तरह
कर रहा है।
रिक ब्रिग्ज़ आगे लिखते हैं कि संस्कृत
अद्भुत समृद्ध, उत्फ़ुल्ल तथा सभी
प्रकार के विपुल विकास से युक्त भाषा
है, और तब भी यह परिशुद्ध है, और
२००० वर्ष पुरानी पाणिनि रचित
व्याकरण के अनुशासन में रहने वाली
भाषा है। इसका विस्तार हुआ, इसने
अपनी समृद्धि को बढ़ाया, परिपूर्णता
की ओर अग्रसर हुई और अलंकृत हुई,
किन्तु हमेशा ही अपने मूल से संबद्ध रही।
प्राचीन भारतीयों ने ध्वनि को बहुत
महत्व दिया, और इसीलिये उनके लेखन,
काव्य या गद्य, में लयात्मकता तथा
सांगीतिक गुण थे । आधुनिक भारतीय
भाषाएं संस्कृत की संतान हैं, और उनकी
शब्दावली तथा अभिव्यक्ति के रूप
इससे समानता रखते हैं। संस्कृत के
वैयाकरणों का ध्येय एक ऐसी निर्दोष
सम्पूर्ण भाषा का निर्माण था, जिसे
‘विकास’ की आवश्यकता नहीं होगी, जो
किसी एक की भाषा नहीं होगी, और
इसीलिये वह सभी की होगी, और वह सभी
मनुष्यों के लिये, तीनों कालों में सम्प्रेषण
तथा संस्कृति का माध्यम या उपकरण
होगी ।”
जवाहरलाल नेहरू ने भी लिखा है :- ”यदि
मुझसे कोई पूछे कि भारत का सर्वाधिक
मूल्यवान रत्नकोश क्या है, मैं बिना
किसी झिझक के उत्तर दूंगा कि वह
संस्कृत भाषा है, और उसका साहित्य है
तथा वह सब कुछ जो उसमें समाहित है।
वह गौरवपूर्ण भव्य विरासत है,और जब
तक इसका अस्तित्व है, जब तक यह
हमारी जनता के जीवन को प्रभावित
करती रहेगी, तब तक यह भारत की मूल
सृजनशीलता जीवंत रहेगी। . . . . भारत ने
एक गौरवपूर्ण भव्य भाषा – संस्कृत –
का निर्माण किया, और इस भाषा, और
इसकी कलाएं और स्थापत्य के द्वारा
इसने सुदूर विदेशों को अपने जीवंत संदेश
भेजे ।”
प्रसिद्ध भाषाविद तथा संस्कृत पंडित
विलियम जोन्स ने भी लिखा है :-
“संस्कृत भाषा की संरचना अद्भुत है;
ग्रीक भाषा से अधिक निर्दोष तथा
संपूर्ण; लातिनी भाषा से अधिक प्रचुर
तथा इन दोनों से अधिक उत्कृष्टरूप से
परिष्कृत।
एक और भाषाविद तथा विद्वान विलियम
कुक टेलर ने लिखा है :- “ यह तो एक
अचंभा करने वाली खोज हुई कि विभिन्न
राज्यों के परिवर्तनों तथा उनकी
विविधताओं के होते हुए भी, भारत में एक
ऐसी भाषा थी जो यूरोप की सभी बोलियों
की जननी है। इन बोलियों की जिऩ्हें हम
उत्कृष्ट कहते हैं – ग्रीक भाषा की
नमनीयता तथा रोमन भाषा की शक्ति –
इन दोनों की वह स्रोत है। उसका दर्शन
यदि आयु की दृष्टि से देखें तब
पाइथोगोरस की शिक्षा तो कल की
बच्ची है, और निर्भय चिन्तन की दृष्टि
से प्लेटो के अत्यंत साहसिक प्रयास तो
शक्तिहीन और अत्यंत साधारण हैं।
उसका काव्य शुद्ध बौद्धिकता की दृष्टि
से हमारे काव्य से न केवल श्रेष्ठतर है
वरन उसकी कल्पना भी हमसे परे थी।
उनके विज्ञान की पुरातनता हमारी
ब्रह्माण्डीय गणनाओं को भी चकरा दे ।
अपने भीमकाय विस्तार में उसके इस
साहित्य ने, जिसका वर्णन हम बिना
आडंबर तथा अतिशयोक्ति के शायद ही
कर सकें, अपना स्थान बनाया – वह
मात्र अकेला खड़ा रहा, और अकेल्ले खड़े
रहने में समर्थ था।”
जार्ज इफ़्राह :- “संस्कृत का अर्थ ही
होता है संपन्न, सम्पूर्ण तथा
निश्चयात्मक। वास्तव में यह भाषा
अत्यंत विस्तृत, मानों कि कृत्रिम, तथा
ध्यान के विभिन्न स्तरों, चेतना की
स्थितियों तथा मानसिक, बौद्धिक एवं
आध्यात्मिक प्रक्रियाओं के वर्णन
करने में समर्थ है। और इसके शब्दकोश
की समृद्धि बहुत महत्वपूर्ण और
वैविध्यपूर्ण है। संस्कृत भाषा ने
शताब्दियॊं छन्दशास्त्र तथा
काव्यशास्त्र के विभिन्न नियमों को
प्रशंसनीय रूप से आधार दिया है। इस
तरह हम देख सकते हैं कि समस्त भारतीय
संस्कृति तथा संस्कृत साहित्य में काव्य
ने प्रबल कार्य किया है।”
एम. मौनियेर वोलियम्स : – “यद्यपि
भारत में ५०० बोलियां हैं, किन्तु एक ही
पावन भाषा है और केवल एक ही पावन
साहित्य जो कि समस्त हिन्दुओं द्वारा
स्वीकृत तथा पूजित है, चाहे वे कितनी ही
जातियों में, बोलियों में, प्रतिष्ठा में तथा
आस्थाओं में कितने ही भिन्न क्यों न हों।
वह भाषा संस्कृत है और संस्कृत
साहित्य जो अकेला वेदों का तथा सबसे
व्यापक अर्थ में ज्ञान का भंडार है,
जिसमें हिंदू पुराण, दर्शन, विधि
सम्मिलित हैं, साथ ही यह सम्पूर्ण धर्म
का, विचारों और प्रथाओं और व्यवहारों
का दर्पण है, और यह मात्र एक खदान है
जिसमें से सभी भारतीय भाषाओं को
समुन्नत करने के लिये या मह्त्वपूर्ण
धार्मिक तथा वैज्ञानिक विचारों की
अभिव्यक्ति के लिये उपयुक्त सामग्री
खनन की जा सकती है।”
सर विलियम विल्सन हंटर :- “कथनों की
परिशुद्धता, और भाषाई धातुओं के
सम्पूर्ण विश्लेषण तथा शब्दों के
निर्माण के सिद्धान्तों के लिये विश्व की
व्याकरणों में पाणिनि की व्याकरण
सर्वश्रेष्ठ है। बीज गणितीय शब्दावली
के उपयोग के द्वारा इसने सूत्रों अर्थात
संक्षिप्त एवं सारगर्भित कथनों में
अभिव्यक्ति की जो कला निर्मित की है
वह संक्षिप्तिकरण में अद्वितीय है,
यद्यपि कभी कभार दुर्बोध होती है। यह
(पाणिनीय व्याकरण) सम्पूर्ण घटनाओं
को, जो संस्कृत भाषा में प्रस्तुत की
जाती हैं, तार्किक समस्वरता में
आयोजित करती है, और यह हमारे
आविष्कारों तथा उद्यमों द्वारा प्राप्त
भव्यतम उपब्धियों में से एक है।”
अल्ब्रेख्ट वैबर :- “हम एकदम से भव्य
भवन में प्रवेश करते हैं जिसके
वास्तुशिल्पी का नाम पाणिनि है तथा
इस भवन में से जो भी जाता है वह इसके
आद्भुत्य से प्रभावित हुए बिना तथा
प्रशंसा किये बिना रह नहीं रहता। भाषा
जितनी भी घटनाओं की अभिव्यक्ति कर
सकती है इस व्याकरण में उसके लिये
पूर्ण क्षमता है, यह क्षमता उसके
अविष्कारक की अद्भुत विदग्धता तथा
उसकी भाषा के सम्पूर्ण क्षेत्र की गहरी
पकड़ दर्शाती है।”
लैनर्ड ब्लूमफ़ील्ड :- भारत में ऐसा
ज्ञान उपजा जिसकी नियति भाषा
संबन्धी यूरोपीय अवधारणाओं में
क्रान्ति पैदा करना थी। हिन्दू व्याकरण
ने यूरोपियों को वाणी के रूपों का
विश्लेषण करना सिखलाया।
वाल्टर यूजीन क्लार्क :- पणिनीय
व्याकरण विश्व की सर्वप्रथम
वैज्ञानिक व्याकरण है; प्रचलित
व्याकरणों में सबसे पुरातन है, और
महानतमों में से एक है। यह तो अठारहवीं
शती के अंत में पश्चिम द्वारा की गई
संस्कृत की खोज है, तथा हमारे द्वारा
भाषा के विश्लेषण करने की भारतीय
विधियों के अध्ययन की कि जिसने हमारे
भाषा तथा व्याकरण के अध्ययन में
क्रान्ति ला दी; तथा इससे हमारे
तुलनात्मक भाषा विज्ञान का जन्म
हुआ। . . . भारत में भाषा का अध्ययन
यूनान या रोम से कहीं अधिक वस्तुपरक
तथा वैज्ञानिक था। वे दर्शन तथा
वाक्यरचना संबन्धों के स्थान पर भाषा
के अनुभवजन्य विश्लेषण में अधिक रुचि
रखते थे । भाषा का भारतीय अध्ययन
उतना ही वस्तुपरक था जितनी किसी
शरीर विज्ञानी द्वारा शरीर की
चीरफ़ाड़।”
अत: हमारा परम कर्तव्य बनता है कि हम
अपनी सर्वश्रेष्ठ धरोहर तथा विश्व की
सर्वश्रेष्ठ भाषा संस्कृत को बचाएं;
साथ ही संस्कृति की रक्षा करने के लिये
भारतीय भाषाओं को बचाएं। नौकरी के
लिये अंग्रेज़ी सीखें, किन्तु जीवन की,
मानवता की रक्षा करन
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(“संस्कृत”), NASA to echo Sanskrit
in space, website confirms its
Mission Sanskrit
Ancient Computer Science
Language :
नासा के एक वैज्ञानिक रिक ब्रिग्ज़ का
एक लेख ‘ए आई’ ( आर्टिफ़िशल
इंटैलिजैन्स्, कृत्रिम् बुद्धि) पत्रिका में
1985 में प्रकाशित हुआ है जिसमें उऩ्होंने
घोषणा की है : “कम्पूटर के लिये
सर्वोत्तम भाषा संस्कृत है”।
कम्पूटर की क्रियाओं के लिये कम्प्यूटर
के अन्दर एक भाषा की आवश्यकता
होती है जो गणितीय तथा अत्यंत
परिशुद्ध होती है। इस भाषा से ‘बात’
करने के लिये कम्प्यूटर प्रोग्रामर्स को
एक प्रचलित (स्वाभाविक )भाषा की
आवश्यकता होती है जो उसके दैनंदिन
कार्य की भाषा तो होती है किन्तु उसका
भी परिव्हुद्ध होना अनिवार्य होता है
अन्यथा कम्प्यूटर उसकी बात को गलत
समझ सकता है।
पिछले बीसेक वर्षों से एक ऐसी
परिशुद्ध स्वाभाविक भाषा का विकास
करने का विपुल व्यय के साथ भरसक
प्रयत्न किया जा रहा है जिससे
क्रमादेशक अपनी बात कम्प्यूटर को
सुस्पष्ट अभिव्यक्त कर सके । एतदर्थ
स्वाभाविक भाषाओं के शब्दार्थ –
विज्ञान तथा वाक्य रचना को संवर्धित
किया जा रहा था। किन्तु तार्किक डेटा के
सम्प्रेषण हेतु यह प्रयास न केवल दुरूह
साबित हो रहे थे वरन अस्पष्ट भी थे ।
अतएव यह विश्वास संपुष्ट हो रहा था
कि स्वाभाविक भाषाएं कृत्रिम भाषाओं
के समान गणितीय यथार्थता तथा
आवश्यक परिशुद्धता के साथ बहुत से
विचारों को सम्प्रेषित नहीं कर सकतीं।
वास्तव में भाषा विज्ञान तथा कृत्रिम
बुद्धि के बीच यह विभाजन वाली सोच ही
गलत है। क्योंकि बिना ऐसे विभाजन के
कम से कम एक स्वाभाविक भाषा ऐसी है
जो लगभग १००० वर्ष की अवधि तक
जीवन्त सम्प्रेषण की भाषा रही है और
जिसके पास अपना विपुल साहित्य भी है;
वह है संस्कृत भाषा। साहित्यिक समृद्धि
के साथ इस भाषा में दार्शनिक तथा
व्याकरणीय साहित्य की परम्परा भी
इस शताब्दी तक सशक्त रूप से सतत
कार्यशील रही है। संस्कृत भाषा में
पदान्वय करने की एक विधि है जो
कृत्रिम बुद्धि में आज की ऐसी क्षमता
के न केवल कार्य में वरन उसके रूप में भी
बराबर है; यह अनोखी उपलब्धि संस्कृत
भाषा के वैयाकरणों की अनेक
उपलब्धियों में से एक है। यह लेख
दर्शाता है कि स्वाभाविक भाषा कृत्रिम
भाषा की तरह भी कार्य कर सकती है,
तथा कृत्रिम बुद्धि में बहुत सा अन्वेषण
कार्य एक सहस्राब्दि पुराने आविष्कार
को एक चक्र के पुनराविष्कार की तरह
कर रहा है।
रिक ब्रिग्ज़ आगे लिखते हैं कि संस्कृत
अद्भुत समृद्ध, उत्फ़ुल्ल तथा सभी
प्रकार के विपुल विकास से युक्त भाषा
है, और तब भी यह परिशुद्ध है, और
२००० वर्ष पुरानी पाणिनि रचित
व्याकरण के अनुशासन में रहने वाली
भाषा है। इसका विस्तार हुआ, इसने
अपनी समृद्धि को बढ़ाया, परिपूर्णता
की ओर अग्रसर हुई और अलंकृत हुई,
किन्तु हमेशा ही अपने मूल से संबद्ध रही।
प्राचीन भारतीयों ने ध्वनि को बहुत
महत्व दिया, और इसीलिये उनके लेखन,
काव्य या गद्य, में लयात्मकता तथा
सांगीतिक गुण थे । आधुनिक भारतीय
भाषाएं संस्कृत की संतान हैं, और उनकी
शब्दावली तथा अभिव्यक्ति के रूप
इससे समानता रखते हैं। संस्कृत के
वैयाकरणों का ध्येय एक ऐसी निर्दोष
सम्पूर्ण भाषा का निर्माण था, जिसे
‘विकास’ की आवश्यकता नहीं होगी, जो
किसी एक की भाषा नहीं होगी, और
इसीलिये वह सभी की होगी, और वह सभी
मनुष्यों के लिये, तीनों कालों में सम्प्रेषण
तथा संस्कृति का माध्यम या उपकरण
होगी ।”
जवाहरलाल नेहरू ने भी लिखा है :- ”यदि
मुझसे कोई पूछे कि भारत का सर्वाधिक
मूल्यवान रत्नकोश क्या है, मैं बिना
किसी झिझक के उत्तर दूंगा कि वह
संस्कृत भाषा है, और उसका साहित्य है
तथा वह सब कुछ जो उसमें समाहित है।
वह गौरवपूर्ण भव्य विरासत है,और जब
तक इसका अस्तित्व है, जब तक यह
हमारी जनता के जीवन को प्रभावित
करती रहेगी, तब तक यह भारत की मूल
सृजनशीलता जीवंत रहेगी। . . . . भारत ने
एक गौरवपूर्ण भव्य भाषा – संस्कृत –
का निर्माण किया, और इस भाषा, और
इसकी कलाएं और स्थापत्य के द्वारा
इसने सुदूर विदेशों को अपने जीवंत संदेश
भेजे ।”
प्रसिद्ध भाषाविद तथा संस्कृत पंडित
विलियम जोन्स ने भी लिखा है :-
“संस्कृत भाषा की संरचना अद्भुत है;
ग्रीक भाषा से अधिक निर्दोष तथा
संपूर्ण; लातिनी भाषा से अधिक प्रचुर
तथा इन दोनों से अधिक उत्कृष्टरूप से
परिष्कृत।
एक और भाषाविद तथा विद्वान विलियम
कुक टेलर ने लिखा है :- “ यह तो एक
अचंभा करने वाली खोज हुई कि विभिन्न
राज्यों के परिवर्तनों तथा उनकी
विविधताओं के होते हुए भी, भारत में एक
ऐसी भाषा थी जो यूरोप की सभी बोलियों
की जननी है। इन बोलियों की जिऩ्हें हम
उत्कृष्ट कहते हैं – ग्रीक भाषा की
नमनीयता तथा रोमन भाषा की शक्ति –
इन दोनों की वह स्रोत है। उसका दर्शन
यदि आयु की दृष्टि से देखें तब
पाइथोगोरस की शिक्षा तो कल की
बच्ची है, और निर्भय चिन्तन की दृष्टि
से प्लेटो के अत्यंत साहसिक प्रयास तो
शक्तिहीन और अत्यंत साधारण हैं।
उसका काव्य शुद्ध बौद्धिकता की दृष्टि
से हमारे काव्य से न केवल श्रेष्ठतर है
वरन उसकी कल्पना भी हमसे परे थी।
उनके विज्ञान की पुरातनता हमारी
ब्रह्माण्डीय गणनाओं को भी चकरा दे ।
अपने भीमकाय विस्तार में उसके इस
साहित्य ने, जिसका वर्णन हम बिना
आडंबर तथा अतिशयोक्ति के शायद ही
कर सकें, अपना स्थान बनाया – वह
मात्र अकेला खड़ा रहा, और अकेल्ले खड़े
रहने में समर्थ था।”
जार्ज इफ़्राह :- “संस्कृत का अर्थ ही
होता है संपन्न, सम्पूर्ण तथा
निश्चयात्मक। वास्तव में यह भाषा
अत्यंत विस्तृत, मानों कि कृत्रिम, तथा
ध्यान के विभिन्न स्तरों, चेतना की
स्थितियों तथा मानसिक, बौद्धिक एवं
आध्यात्मिक प्रक्रियाओं के वर्णन
करने में समर्थ है। और इसके शब्दकोश
की समृद्धि बहुत महत्वपूर्ण और
वैविध्यपूर्ण है। संस्कृत भाषा ने
शताब्दियॊं छन्दशास्त्र तथा
काव्यशास्त्र के विभिन्न नियमों को
प्रशंसनीय रूप से आधार दिया है। इस
तरह हम देख सकते हैं कि समस्त भारतीय
संस्कृति तथा संस्कृत साहित्य में काव्य
ने प्रबल कार्य किया है।”
एम. मौनियेर वोलियम्स : – “यद्यपि
भारत में ५०० बोलियां हैं, किन्तु एक ही
पावन भाषा है और केवल एक ही पावन
साहित्य जो कि समस्त हिन्दुओं द्वारा
स्वीकृत तथा पूजित है, चाहे वे कितनी ही
जातियों में, बोलियों में, प्रतिष्ठा में तथा
आस्थाओं में कितने ही भिन्न क्यों न हों।
वह भाषा संस्कृत है और संस्कृत
साहित्य जो अकेला वेदों का तथा सबसे
व्यापक अर्थ में ज्ञान का भंडार है,
जिसमें हिंदू पुराण, दर्शन, विधि
सम्मिलित हैं, साथ ही यह सम्पूर्ण धर्म
का, विचारों और प्रथाओं और व्यवहारों
का दर्पण है, और यह मात्र एक खदान है
जिसमें से सभी भारतीय भाषाओं को
समुन्नत करने के लिये या मह्त्वपूर्ण
धार्मिक तथा वैज्ञानिक विचारों की
अभिव्यक्ति के लिये उपयुक्त सामग्री
खनन की जा सकती है।”
सर विलियम विल्सन हंटर :- “कथनों की
परिशुद्धता, और भाषाई धातुओं के
सम्पूर्ण विश्लेषण तथा शब्दों के
निर्माण के सिद्धान्तों के लिये विश्व की
व्याकरणों में पाणिनि की व्याकरण
सर्वश्रेष्ठ है। बीज गणितीय शब्दावली
के उपयोग के द्वारा इसने सूत्रों अर्थात
संक्षिप्त एवं सारगर्भित कथनों में
अभिव्यक्ति की जो कला निर्मित की है
वह संक्षिप्तिकरण में अद्वितीय है,
यद्यपि कभी कभार दुर्बोध होती है। यह
(पाणिनीय व्याकरण) सम्पूर्ण घटनाओं
को, जो संस्कृत भाषा में प्रस्तुत की
जाती हैं, तार्किक समस्वरता में
आयोजित करती है, और यह हमारे
आविष्कारों तथा उद्यमों द्वारा प्राप्त
भव्यतम उपब्धियों में से एक है।”
अल्ब्रेख्ट वैबर :- “हम एकदम से भव्य
भवन में प्रवेश करते हैं जिसके
वास्तुशिल्पी का नाम पाणिनि है तथा
इस भवन में से जो भी जाता है वह इसके
आद्भुत्य से प्रभावित हुए बिना तथा
प्रशंसा किये बिना रह नहीं रहता। भाषा
जितनी भी घटनाओं की अभिव्यक्ति कर
सकती है इस व्याकरण में उसके लिये
पूर्ण क्षमता है, यह क्षमता उसके
अविष्कारक की अद्भुत विदग्धता तथा
उसकी भाषा के सम्पूर्ण क्षेत्र की गहरी
पकड़ दर्शाती है।”
लैनर्ड ब्लूमफ़ील्ड :- भारत में ऐसा
ज्ञान उपजा जिसकी नियति भाषा
संबन्धी यूरोपीय अवधारणाओं में
क्रान्ति पैदा करना थी। हिन्दू व्याकरण
ने यूरोपियों को वाणी के रूपों का
विश्लेषण करना सिखलाया।
वाल्टर यूजीन क्लार्क :- पणिनीय
व्याकरण विश्व की सर्वप्रथम
वैज्ञानिक व्याकरण है; प्रचलित
व्याकरणों में सबसे पुरातन है, और
महानतमों में से एक है। यह तो अठारहवीं
शती के अंत में पश्चिम द्वारा की गई
संस्कृत की खोज है, तथा हमारे द्वारा
भाषा के विश्लेषण करने की भारतीय
विधियों के अध्ययन की कि जिसने हमारे
भाषा तथा व्याकरण के अध्ययन में
क्रान्ति ला दी; तथा इससे हमारे
तुलनात्मक भाषा विज्ञान का जन्म
हुआ। . . . भारत में भाषा का अध्ययन
यूनान या रोम से कहीं अधिक वस्तुपरक
तथा वैज्ञानिक था। वे दर्शन तथा
वाक्यरचना संबन्धों के स्थान पर भाषा
के अनुभवजन्य विश्लेषण में अधिक रुचि
रखते थे । भाषा का भारतीय अध्ययन
उतना ही वस्तुपरक था जितनी किसी
शरीर विज्ञानी द्वारा शरीर की
चीरफ़ाड़।”
अत: हमारा परम कर्तव्य बनता है कि हम
अपनी सर्वश्रेष्ठ धरोहर तथा विश्व की
सर्वश्रेष्ठ भाषा संस्कृत को बचाएं;
साथ ही संस्कृति की रक्षा करने के लिये
भारतीय भाषाओं को बचाएं। नौकरी के
लिये अंग्रेज़ी सीखें, किन्तु जीवन की,
मानवता की रक्षा करन
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