भारत की
पवित्र भूमि पर ऐसे कई महापुरुषों ने जन्म
लिया है, जिन्होंने अपने कृत्यों और सिद्धांतों
के बल पर मानव जीवन के भीतर छिपे गूढ़
रहस्यों को उजागर किया. इन्हीं में से एक हैं
महात्मा बुद्ध, जिन्होंने सामान्य मनुष्य के रूप
में जन्म लेकर अध्यात्म की उस ऊंचाई को
छुआ जहां तक पहुंचना किसी आम व्यक्ति के
लिए मुमकिन नहीं है. ऐसे महान पुरुष के
दिखलाए गए मार्ग को लोगों ने एक धर्म के रूप
में ग्रहण किया जिसके परिणामस्वरूप भारत
समेत सभी बड़े देशों में बौद्ध धर्म एक प्रमुख
धर्म के रूप में स्वीकृत कर लिया गया.
महात्मा बुद्ध का वास्तविक नाम सिद्धार्थ
था किंतु गौतमी द्वारा पाले जाने के कारण
उन्हें गौतम भी कहा गया. बुद्धत्व की प्राप्ति
के बाद उनके नाम के आगे बुद्ध उपसर्ग जोड़
दिया गया और धीरे-धीरे वे महात्मा बुद्ध के
तौर पर प्रख्यात हो गए. गौतम बुद्ध के
आदर्शों और बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाले
लोगों के लिए आज का दिन बेहद खास है.
मान्यताओं के अनुसार बैसाख मास की
पूर्णिमा के दिन महात्मा बुद्ध पृथ्वी पर
अवतरित हुए थे और इसी दिन उन्हें बुद्धत्व
के साथ-साथ महापरिनिर्वाण की भी प्राप्ति
हुई थी.
महात्मा बुद्ध का जीवन
सिद्धार्थ का जन्म शाक्य गणराज्य की
राजधानी कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन के घर
हुआ था. जन्म के सात दिन के भीतर ही
सिद्धार्थ की मां का निधन हो गया था. उनका
पालन पोषण शुद्धोधन की दूसरी रानी
महाप्रजावती ने किया. सिद्धार्थ के जन्म के
समय ही एक महान साधु नेब यह घोषणा कर
दी थी कि यह बच्चा या तो एक महान राजा
बनेगा या फिर एक बेहद पवित्र मनुष्य के रूप
में अपनी पहचान स्थापित करेगा.
इस भविष्यवाणी को सुनकर राजा शुद्धोधन
ने अपनी सामर्थ्य की हद तक सिद्धार्थ को
दुःख से दूर रखने की कोशिश की. लेकिन छोटी
सी आयु में ही सिद्धार्थ जीवन और मृत्यु की
सच्चाई को समझ गए. उन्होंने यह जान लिया
कि जिस प्रकार मनुष्य का जन्म लेना एक
सच्चाई है उसी प्रकार बुढ़ापा और निधन भी
जीवन की कभी ना टलने वाली हकीकत है.
संसार की सबसे बड़ी सच्चाई जानने के बाद
महात्मा बुद्ध सांसारिक खुशियों और
विलासिता भरे जीवन से पूरी तरह विमुख हो
गए. राज पाठ के साथ, पत्नी और पुत्र को
छोड़कर उन्होंने एक साधु का जीवन अपना
लिया.
बुद्धत्व की प्राप्ति
दो अन्य ब्राह्मणों के साथ सिद्धार्थ ने
अपने भीतर उपज रहे प्रश्नों के हल ढूंढ़ने शुरू
किए. लेकिन समुचित ध्यान लगाने और कड़े
परिश्रम के बाद भी उन्हें अपने प्रश्नों के हल
नहीं मिले. हर बार असफलता हाथ लगने के बाद
उन्होंने अपने कुछ साथियों के साथ कठोर तप
करने का निर्णय लिया. छ: वर्षों के कठोर तप
के बाद भी वह अपने उद्देश्यों को पूरा नहीं कर
पाए. इसके बाद उन्होंने कठोर तपस्या
छोड़कर आर्य अष्टांग मार्ग, जिसे मध्यम
मार्ग भी कहां जाता है, ढूंढ़ निकाला. वह एक
पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गए और निश्चय
किया कि अपने प्रश्नों के उत्तर जाने बिना
वह यहां से उठेंगे नहीं. लगभग 49 दिनों तक
ध्यान में रहने के बाद उन्हें सर्वोच्च ज्ञान
की प्राप्ति हुई और मात्र 35 वर्ष की उम्र में
ही वह सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध बन गए.
ब्य़ूटी क्वीन से बॉलिवुड तक का सफर
ज्ञान की प्राप्ति होने के बाद महात्मा बुद्ध
दो व्यापारियों, तपुसा और भलिका, से मिले जो
उनके पहले अनुयायी भी बने. वाराणसी के
समीप स्थित सारनाथ में उन्होंने अपना पहला
धर्मोपदेश दिया.
बुद्ध का महापरिनिर्वाण
बौद्ध धर्म से जुड़े साहित्य के अनुसार 80
वर्ष की आयु में महात्मा बुद्ध ने यह घोषित
कर दिया था कि बहुत ही जल्द वह
महापरिनिर्वाण की अवस्था में पहुंच जाएंगे.
इस कथन के बाद महात्मा बुद्ध ने एक लुहार
के हाथ से आखिरी निवाला खाया. इसके बाद
वह बहुत ज्यादा बीमार हो गए. लुहार को लगा
कि उसके हाथ से खाने के कारण महात्मा बुद्ध
की यह हालत हुई है इसीलिए महात्मा बुद्ध ने
अपने एक अनुयायी को कुंडा नामक लुहार को
समझाने भेजा. वैद्य ने भी यह प्रमाणित कर
दिया था कि उनका निधन वृद्धावस्था के
कारण हुआ है ना कि विशाक्त खाद्य के
कारण.
बौद्ध धर्म की शिक्षा
सम्यक दृष्टि – सम्यक दृष्टि का अर्थ है कि
जीवन में हमेशा सुख-दुख आता रहता है हमें
अपने नजरिये को सही रखना चाहिए. अगर
दुख है तो उसे दूर भी किया जा सकता है.
सम्यक संकल्प – इसका अर्थ है कि जीवन में
जो काम करने योग्य है, जिससे दूसरों का भला
होता है हमें उसे करने का संकल्प लेना चाहिए
और ऐसे काम कभी नहीं करने चाहिए जो अन्य
लोगों के लिए हानिकारक साबित हो.
सम्यक वचन - इसका अर्थ यह है कि मनुष्य
को अपनी वाणी का सदैव सदुपयोग ही करना
चाहिए. असत्य, निंदा और अनावश्यक बातों
से बचना चाहिए.
सम्यक कर्मांत – मनुष्य को किसी भी प्राणी
के प्रति मन, वचन, कर्म से हिंसक व्यवहार
नहीं करना चाहिए. उसे दुराचार और भोग
विलास से दूर रहना चाहिए.
सम्यक आजीविका - गलत, अनैतिक या
अधार्मिक तरीकों से आजीविका प्राप्त नहीं
करना.
सम्यक व्यायाम - बुरी और अनैतिक आदतों
को छोडऩे का सच्चे मन से प्रयास करना
चाहिए. मनुष्य को सदगुणों को ग्रहण करने के
लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए.
सम्यक स्मृति - इसका अर्थ यह है कि हमें
कभी भी यह नहीं भूलना चाहिए कि सांसारिक
जीवन क्षणिक और नाशवान है.
सम्यक समाधि - ध्यान की वह अवस्था
जिसमें मन की अस्थिरता, चंचलता, शांत होती
है तथा विचारों का अनावश्यक भटकाव रुकता
है.
क्यों मनाया जाता ह
पवित्र भूमि पर ऐसे कई महापुरुषों ने जन्म
लिया है, जिन्होंने अपने कृत्यों और सिद्धांतों
के बल पर मानव जीवन के भीतर छिपे गूढ़
रहस्यों को उजागर किया. इन्हीं में से एक हैं
महात्मा बुद्ध, जिन्होंने सामान्य मनुष्य के रूप
में जन्म लेकर अध्यात्म की उस ऊंचाई को
छुआ जहां तक पहुंचना किसी आम व्यक्ति के
लिए मुमकिन नहीं है. ऐसे महान पुरुष के
दिखलाए गए मार्ग को लोगों ने एक धर्म के रूप
में ग्रहण किया जिसके परिणामस्वरूप भारत
समेत सभी बड़े देशों में बौद्ध धर्म एक प्रमुख
धर्म के रूप में स्वीकृत कर लिया गया.
महात्मा बुद्ध का वास्तविक नाम सिद्धार्थ
था किंतु गौतमी द्वारा पाले जाने के कारण
उन्हें गौतम भी कहा गया. बुद्धत्व की प्राप्ति
के बाद उनके नाम के आगे बुद्ध उपसर्ग जोड़
दिया गया और धीरे-धीरे वे महात्मा बुद्ध के
तौर पर प्रख्यात हो गए. गौतम बुद्ध के
आदर्शों और बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाले
लोगों के लिए आज का दिन बेहद खास है.
मान्यताओं के अनुसार बैसाख मास की
पूर्णिमा के दिन महात्मा बुद्ध पृथ्वी पर
अवतरित हुए थे और इसी दिन उन्हें बुद्धत्व
के साथ-साथ महापरिनिर्वाण की भी प्राप्ति
हुई थी.
महात्मा बुद्ध का जीवन
सिद्धार्थ का जन्म शाक्य गणराज्य की
राजधानी कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन के घर
हुआ था. जन्म के सात दिन के भीतर ही
सिद्धार्थ की मां का निधन हो गया था. उनका
पालन पोषण शुद्धोधन की दूसरी रानी
महाप्रजावती ने किया. सिद्धार्थ के जन्म के
समय ही एक महान साधु नेब यह घोषणा कर
दी थी कि यह बच्चा या तो एक महान राजा
बनेगा या फिर एक बेहद पवित्र मनुष्य के रूप
में अपनी पहचान स्थापित करेगा.
इस भविष्यवाणी को सुनकर राजा शुद्धोधन
ने अपनी सामर्थ्य की हद तक सिद्धार्थ को
दुःख से दूर रखने की कोशिश की. लेकिन छोटी
सी आयु में ही सिद्धार्थ जीवन और मृत्यु की
सच्चाई को समझ गए. उन्होंने यह जान लिया
कि जिस प्रकार मनुष्य का जन्म लेना एक
सच्चाई है उसी प्रकार बुढ़ापा और निधन भी
जीवन की कभी ना टलने वाली हकीकत है.
संसार की सबसे बड़ी सच्चाई जानने के बाद
महात्मा बुद्ध सांसारिक खुशियों और
विलासिता भरे जीवन से पूरी तरह विमुख हो
गए. राज पाठ के साथ, पत्नी और पुत्र को
छोड़कर उन्होंने एक साधु का जीवन अपना
लिया.
बुद्धत्व की प्राप्ति
दो अन्य ब्राह्मणों के साथ सिद्धार्थ ने
अपने भीतर उपज रहे प्रश्नों के हल ढूंढ़ने शुरू
किए. लेकिन समुचित ध्यान लगाने और कड़े
परिश्रम के बाद भी उन्हें अपने प्रश्नों के हल
नहीं मिले. हर बार असफलता हाथ लगने के बाद
उन्होंने अपने कुछ साथियों के साथ कठोर तप
करने का निर्णय लिया. छ: वर्षों के कठोर तप
के बाद भी वह अपने उद्देश्यों को पूरा नहीं कर
पाए. इसके बाद उन्होंने कठोर तपस्या
छोड़कर आर्य अष्टांग मार्ग, जिसे मध्यम
मार्ग भी कहां जाता है, ढूंढ़ निकाला. वह एक
पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गए और निश्चय
किया कि अपने प्रश्नों के उत्तर जाने बिना
वह यहां से उठेंगे नहीं. लगभग 49 दिनों तक
ध्यान में रहने के बाद उन्हें सर्वोच्च ज्ञान
की प्राप्ति हुई और मात्र 35 वर्ष की उम्र में
ही वह सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध बन गए.
ब्य़ूटी क्वीन से बॉलिवुड तक का सफर
ज्ञान की प्राप्ति होने के बाद महात्मा बुद्ध
दो व्यापारियों, तपुसा और भलिका, से मिले जो
उनके पहले अनुयायी भी बने. वाराणसी के
समीप स्थित सारनाथ में उन्होंने अपना पहला
धर्मोपदेश दिया.
बुद्ध का महापरिनिर्वाण
बौद्ध धर्म से जुड़े साहित्य के अनुसार 80
वर्ष की आयु में महात्मा बुद्ध ने यह घोषित
कर दिया था कि बहुत ही जल्द वह
महापरिनिर्वाण की अवस्था में पहुंच जाएंगे.
इस कथन के बाद महात्मा बुद्ध ने एक लुहार
के हाथ से आखिरी निवाला खाया. इसके बाद
वह बहुत ज्यादा बीमार हो गए. लुहार को लगा
कि उसके हाथ से खाने के कारण महात्मा बुद्ध
की यह हालत हुई है इसीलिए महात्मा बुद्ध ने
अपने एक अनुयायी को कुंडा नामक लुहार को
समझाने भेजा. वैद्य ने भी यह प्रमाणित कर
दिया था कि उनका निधन वृद्धावस्था के
कारण हुआ है ना कि विशाक्त खाद्य के
कारण.
बौद्ध धर्म की शिक्षा
सम्यक दृष्टि – सम्यक दृष्टि का अर्थ है कि
जीवन में हमेशा सुख-दुख आता रहता है हमें
अपने नजरिये को सही रखना चाहिए. अगर
दुख है तो उसे दूर भी किया जा सकता है.
सम्यक संकल्प – इसका अर्थ है कि जीवन में
जो काम करने योग्य है, जिससे दूसरों का भला
होता है हमें उसे करने का संकल्प लेना चाहिए
और ऐसे काम कभी नहीं करने चाहिए जो अन्य
लोगों के लिए हानिकारक साबित हो.
सम्यक वचन - इसका अर्थ यह है कि मनुष्य
को अपनी वाणी का सदैव सदुपयोग ही करना
चाहिए. असत्य, निंदा और अनावश्यक बातों
से बचना चाहिए.
सम्यक कर्मांत – मनुष्य को किसी भी प्राणी
के प्रति मन, वचन, कर्म से हिंसक व्यवहार
नहीं करना चाहिए. उसे दुराचार और भोग
विलास से दूर रहना चाहिए.
सम्यक आजीविका - गलत, अनैतिक या
अधार्मिक तरीकों से आजीविका प्राप्त नहीं
करना.
सम्यक व्यायाम - बुरी और अनैतिक आदतों
को छोडऩे का सच्चे मन से प्रयास करना
चाहिए. मनुष्य को सदगुणों को ग्रहण करने के
लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए.
सम्यक स्मृति - इसका अर्थ यह है कि हमें
कभी भी यह नहीं भूलना चाहिए कि सांसारिक
जीवन क्षणिक और नाशवान है.
सम्यक समाधि - ध्यान की वह अवस्था
जिसमें मन की अस्थिरता, चंचलता, शांत होती
है तथा विचारों का अनावश्यक भटकाव रुकता
है.
क्यों मनाया जाता ह
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